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अनु॑ त्वा॒ रथो॒ अनु॒ मर्यो॑ अर्व॒न्ननु॒ गावोऽनु॒ भग॑: क॒नीना॑म्। अनु॒ व्राता॑स॒स्तव॑ स॒ख्यमी॑यु॒रनु॑ दे॒वा म॑मिरे वी॒र्यं॑ ते ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

anu tvā ratho anu maryo arvann anu gāvo nu bhagaḥ kanīnām | anu vrātāsas tava sakhyam īyur anu devā mamire vīryaṁ te ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अनु॑। त्वा॒। रथः॑। अनु॑। मर्यः॑। अ॒र्व॒न्। अनु॑। गावः॑। अनु॑। भगः॑। क॒नीना॑म्। अनु॑। व्राता॑सः। तव॑। स॒ख्यम्। ई॒युः॒। अनु॑। दे॒वाः। म॒मि॒रे॒। वी॒र्य॑म्। ते॒ ॥ १.१६३.८

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:163» मन्त्र:8 | अष्टक:2» अध्याय:3» वर्ग:12» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:22» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अर्वन्) घोड़े के समान वर्त्तमान ! जिस (त्वा) तेरे (अनु) पीछे (रथः) विमानादि रथ फिर (अनु) पीछे (मर्य्यः) मरण धर्म रखनेवाला मनुष्य फिर (अनु) पीछे (गावः) गौएँ और (कनीनाम्) कामना करते हुए सज्जनों को (अनु) पीछे (भगः) ऐश्वर्य तथा (व्रातासः) सत्य आचरणों में प्रसिद्ध (देवाः) विद्वान् जन (ते) तेरे (वीर्यम्) पराक्रम को (अनु, ममिरे) अनुकूलता से सिद्ध करते हैं वे उक्त विद्वान् (तव) तेरी (सख्यम्) मित्रता वा मित्र के काम को (अनु, ईयुः) अनुकूलता से प्राप्त होवें ॥ ८ ॥
भावार्थभाषाः - जैसे अग्नि के अनुकूल विमानादि यानों को मनुष्य प्राप्त होते हैं, वैसे अध्यापक और उपदेशक के अनुकूल विज्ञान को प्राप्त होते हैं। जो विद्वानों को मित्र करते हैं, वे सत्याचरणशील और पराक्रमवान् होते हैं ॥ ८ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे अर्वन् यं त्वाऽनु रथोऽनु मर्य्योऽनु गावः कनीनामनु भगो व्रातासो देवास्ते वीर्यमनु ममिरे ते तस्य तव सख्यमन्वीयुः ॥ ८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अनु) (त्वा) त्वाम् (रथः) विमानादियानम् (अनु) (मर्यः) मरणधर्मा मनुष्यः (अर्वन्) अश्ववद्वर्त्तमान (अनु) (गावः) धेनवः (अनु) (भगः) ऐश्वर्यम् (कनीनाम्) कामयमानानाम् (अनु) (व्रातासः) व्रतेषु सत्याचरणेषु भवाः (तव) (सख्यम्) सख्युर्भावः कर्म वा (ईयुः) प्राप्नुयुः (अनु) (देवाः) विद्वांसः (ममिरे) निर्मिमते (वीर्यम्) पराक्रमम् (ते) तव ॥ ८ ॥
भावार्थभाषाः - यथाऽग्निमनुयानानि मनुष्या गच्छन्ति तथाऽध्यापकोपदेशकावनु विज्ञानं लभन्ते ये विदुषः सखीन् कुर्वन्ति ते सत्याचारा वीर्यवन्तो जायन्ते ॥ ८ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे माणसांना अग्नियुक्त विमान प्राप्त करता येते तसे अध्यापक व उपदेशक विज्ञान प्राप्त करतात. जे विद्वानाशी मैत्री करतात ते सत्याचरणी व पराक्रमी असतात. ॥ ८ ॥